भाग ४२१
मराठो का गौरवशाली इतिहास
छत्तीसगढ़
में मराठों का आगमन छत्तीसगढ़ को पहले दक्षिण कौशल के नाम से जाना जाता था
जिसका उल्लेख रामायण और महाभारत में होता है। यह भगवान् श्री राम के मामा
का गाँव था।
छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश राज्य का ही हिस्सा था। वर्ष 2000 में मध्यप्रदेश 2 भाग में विभक्त हुआ, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़।
बहुत
ही कम लोगों को यह जानकारी है की छत्तीसगढ़ भी मराठा साम्राज्य का हिस्सा
था। आइये जाने की छत्तीसगढ़ मराठा साम्राज्य में कैसे शामिल हुआ।
छत्तीसगढ़ में मराठों का आगमन
छत्तीसगढ़
में मराठों का आगमन सन् 1741 में हुआ, तब मराठा साम्राज्य की बागडोर,
छत्रपति शाहू महाराज के हाथों में थी और उनके पेशवा थे बाजीराव पेशवा के
पुत्र बालाजी बाजीराव।
मराठा साम्राज्य अलग-अलग भागों में विभक्त था,
बड़ोदा राज्य- गायकवाड़,
देवास राज्य- पवार,
धार राज्य- पवार,
ग्वालियर राज्य- शिंदे(सिंधिया),
इंदौर राज्य- होल्कर
झाँसी राज्य- निंबाळकर।
सन् 1739 में चाँद सुल्तान की मृत्यु के बाद राघोजी राव भोसले ने मराठों की ओर से नागपुर में शासन किया।
राघोजी
राव भोसले मूलतः सातारा जिले के देउर ग्राम के थे, ये छत्रपति शाहू महाराज
के सेनापति थे, राघोजी राव भोसले के 2 भाई और इनके दादा जी(आजोबा) छत्रपति
शिवाजी महाराज की सेना में थे, जिन्होंने कई मुख्य लड़ाइयों में अहम्
भूमिका निभाई थी। राघोजी राव भोसले के 4 पुत्र थे जानोजी, माधोजी, रघुजी और
बिम्बाजी।
सन्
1741 में बिम्बाजी राव भोसले के नेतृत्व में नागपुर घराने के सेनापति
भास्कर पंत ने "रतनपुर (छत्तीसगढ़ की पुरानी राजधानी)" पर आक्रमण किया, उस
समय कल्चुरी वंश के रघुनाथ सिंह रतनपुर के शासक थे उनकी आयु 60 वर्ष थी। वे
अपने इकलौते पुत्र की मृत्यु के कारण बहुत ही पीड़ित थे और युद्ध करने की
मानसिक स्थिति में नहीं थे और इसलिए उन्होंने आत्मसमर्पण कर दिया। इस
प्रकार बिम्बाजी राव भोसले, छत्तीसगढ़ के पहले मराठा शासक हुए।
उस
समय हैदय वंश के अमरसिंह, "रायपुर (छत्तीसगढ़ की वर्तमान राजधानी)" शाखा
के शासक थे। बिम्बाजी राव भोसले ने उन्हें राजिम, रायपुर और पाटन की जागीर
देकर उनसे 7000 रुपये कर(TAX) प्रति वर्ष लेने लगे। अमरसिंह की मृत्यु के
बाद जब उनके पुत्र शिवराज सिंह राजा बने तब बिम्बाजी ने उनसे उनकी सारी
जागीरें छीन ली और 5 गाँव देकर सन् 1757 में रायपुर में अपना प्रत्यक्ष
शासन स्थापित किया। यह शासनकाल सन् 1854 तक चलता रहा।
बिम्बाजी
के शासनकाल में रतनपुर और रायपुर में संगीत और साहित्य का विकास हुआ, भवन
निर्माण हुआ। रतनपुर के रामटेकरी में राम मन्दिर और बिलासपुर जिले के जुना
बिलासपुर क्षेत्र में बावली कुँए का भी निर्माण भी बिम्बाजी ने ही करवाया
था, रायपुर में दुधाधारी मन्दिर का निर्माण भी बिम्बाजी की सहायता से हुआ।
इसलिए बिम्बाजी अत्यंत लोकप्रिय हुए, इसलिए इनके द्वारा छत्तीसगढ़ की
राजनीती में जो परिवर्तन लाया गया उसे छत्तीसगढ़ के लोगों ने स्वीकार किया।
बिम्बाजी ने रतनपुर और रायपुर को प्रशासनिक दृष्टि से एक राज्य बनाकर इसे
छत्तीसगढ़ की संज्ञा दी। मराठी संस्कृति की कुछ चीजें छत्तीसगढ़ में भी
प्रचलित हो गयी जैसे- विजयादशमी के दिन सोने का पत्र (सोन पत्ता) देना,
गणेश चतुर्थी का आयोजन करना आदि। छत्तीसगढ़ में मराठी भाषा का प्रयोग भी
बिम्बाजी ने ही करवाया।
रतनपुर
का वैभव धीरे-धीरे समाप्त हो रहा था। बिम्बाजी की मृत्यु के बाद जब उनके
पुत्र व्यंकोजी राव भोसले राजा बने तब उन्होंने नागपुर से ही छत्तीसगढ़ का
शासन चलाने का निर्णय किया। इससे पहले रतनपुर में ही रहकर छत्तीसगढ़ का
शासन चलाया जा रहा था। धीरे-धीरे नागपुर ही छत्तीसगढ़ की राजनैतिक
गतिविधियों का केंद्र बन गया और रतनपुर का राजनितिक परिचय समाप्त हो गया।
व्यंकोजी राव भोसले ने सूबेदारों (मलगुजारों) के माध्यम से छत्तीसगढ़ में
शासन किया, इस प्रकार छत्तीसगढ़ में सूबेदारों की परम्परा शुरू हुई जिसे
सूबा-सरकार या मालगुजार-शासन भी कहते हैं। रतनपुर सूबेदारों का मुख्यालय था
और पूरा क्षेत्र रतनपुर से ही संचालित होता था। यह प्रणालि सन् 1787 से
सन् 1818 तक चलती रही। छत्तीसगढ़ में सूबा-सरकार स्थापित कर व्यंकोजी राव
भोसले, मराठा और अन्य सूबेदारों के माध्यम से कर(TAX) वसूला करते थे। इन
मराठा सूबेदारों के वंशज आज भी छत्तीसगढ़ में रहते हैं। छत्तीसगढ़ के अलग
राज्य बनने के बाद भारत सरकार के द्वारा रायपुर को छत्तीसगढ़ की राजधानी
बनाई गयी। अब रतनपुर को छत्तीसगढ़ की पुरानी व सांस्कृतिक राजधनी के रूप
में जाना जाता है जो की बिलासपुर जिले के अंतर्गत है। आज भले ही छत्तीसगढ़
की राजधानी रायपुर है लेकिन रतनपुर को "कल्चुरी" और "भोसले" राजाओं की
राजधानी होने का गौरव प्राप्त
छत्तीसगढ़
में आज भी बहुत से ऐसे गाँव हैं जहाँ के मालगुजार मराठा हैं। छत्तीसगढ़
में इसे गौंटिया कहा जाता है। यहाँ पर श्री विठ्ठल मंदिर और कुलस्वामी
खंडोबा मंदिर भी है !!
।।जय भवानीजय शिवराय।।
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