मराठो का गौरवशाली इतिहास
आप सभी नें सत्रहवीं सदी के मराठों की वीरता के बारे में इस पेज पर कई कहानियां सुनी होगी। आज हम आपको बीसवीं सदी के एक महान मराठा राजा के साहस की सच्ची घटना के बारे में बता रहें हैं।
ब्रिटिश हुकूमत के दौरान भारत की बड़ौदा रियासत की गद्दी पर राजा सयाजीराव गायकवाड़ तृतीय विराजमान हुए। महाराजा गायकवाड़ दूरदर्शी तथा उच्च दृष्टिकोण के परिचायक थे। वह अपनी प्रजा की भलाई के लिये सदा समर्पित रहे।विशेष रुप से शिक्षा तथा राज्य की बुनियादी सुविधाओं के लिए अथक प्रयास किये।
ब्रिटिश हुकूमत के राजा जाजँ पंचम का सन् 1912 में भारत आगमन हुआ। ब्रिटिश राजा के आदर में दिल्ली में एक भव्य राज दरबार का आयोजन गया।इस दरबार में भारतीय राजाओं को भी आमंत्रित किया गया इस आमंत्रण के साथ ब्रिटिश राजा के शिष्टाचार से संबंधित दिशानिर्देशों का पालन करने की भारतीय राजाओं से अपेक्षा की गयी थी। इस शिष्टाचार में ब्रिटिश राजा को झुककर सलाम करना तथा उसी अवस्था में सात कदम पीछे हटना शामिल था।नियत समय पर दिल्ली दरबार में सभी राजा एकत्र हुए तथा ब्रिटिश राजा को सलाम करना प्रारंभ किया। अपनी बारी आने पर महाराजा बड़ौदा उठकर ब्रिटिश राजा के सामने पहुंचे और अपनी शाही छडी उठाकर बिना सर झुकाये सलाम कर वापस आकर बैठ गये।
पहले तो भारतीय राजा महाराजा के इस बरताव से चकित हुए पर बाद में पूरी बात पता चलनें पर दबी जुबान से महाराजा के इस साहस की प्रशंसा की। वह सभी किसी विदेशी ताकत के सामने अपना सिर झुकाने में अपना अपमान महसूस कर रहे थे पर ब्रिटिश हुकूमत की ताकत के सामने मजबूरीवश उन्हें ऐसा करना पड़ रहा था।
दरअसल महाराजा सयाजी के पूर्वज महान मराठा समुदाय से आते थे जो लगभग भारत के दो तिहाई हिस्से पर राज्य करते थे और महाराजा बड़ौदा एक विदेशी ताकत के सामने अपना सिर झुकाना अपने पूर्वजों का अपमान समझते थे।
इस घटना को ब्रिटिश राजा नें अपना अपमान समझा तथा इस विषय में महाराजा से वायसराय के द्वारा सवाल-जवाब किया गया जिसका महाराजा बड़ौदा नें कोई स्पष्ट उत्तर नहीं दिया।
इस प्रकार महाराजा नें अपने स्वाभिमान की रक्षा की।
© Gaurav Kumar
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