मराठो का गौरवशाली इतिहास
आज हम आपको मराठों की एक विशेष गुण के बारे में बता रहें हैं।
दक्खन के पठारों की जलवायु तथा कठिनाइयों से भरे जीवन नें वहाँ के निवासियों को वातावरण के प्रति सहिष्णुता प्रदान की है। यही कारण था कि मराठे हर प्रकार की परिस्थितियों में लड़ने में सक्षम थे।
मराठा सैनिकों के बारे में कहा जाता है कि वह एक मुट्ठी भुने हुए चने खाकर दिन भर लड़ सकते हैं। मराठों की इस गुण का वर्णन विदेशी इतिहासकारों नें भी किया है। एक सच्ची घटना के द्वारा इसके बारे में अधिक जानकारी मिलती है।
यह घटना सन् 1737 की है जब पेशवा बाजीराव प्रथम नें मुग़ल सल्तनत को दिल्ली में घेरने की कोशिश की।पेशवा बाजीराव अपनी तेज चाल के लिए जाने जाते थे उन्होंने बुंदेलखंड से दिल्ली की दस दिन की दूरी को केवल चार दिनों में तय किया तथा दिल्ली के कालकाजी नामक स्थान पर पडाव डाला। मराठा सेना के दिल्ली के पास होने की खबर सुनकर मुग़ल सल्तनत के कान खड़े हो गये। इस बात की पुष्टि के लिए एक गुप्तचर को भिखारी की वेशभूषा में मराठा छावनी की ओर भेजा गया।
भिखारी के रूप में गुप्तचर नें मराठा छावनी से सुबूत के तौर पर जो चीजें इकट्ठा करके मुगल दरबार में पेश कीं वह थीं
1. मुठ्ठी भर भुने हुए चने
2. अधपकी रोटियों के टुकड़े
3. लाल मिर्च
यह था दक्खन के उन वीर मराठों का दैनिक भोजन जिसके बल पर अटक से कटक तक मराठा साम्राज्य का विस्तार हुआ।
© Gaurav Kumar
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