भाग ४२२
मराठो का गौरवशाली इतिहास
**हिटलर से भेंट करनेवाले पहले भारतीय राजा सयाजीराव गायकवाड.**
देश की आजादी के लिए तानाशाह अॅडॉल्फ हिटलर की सहायता लेने के लिए नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने 1941 में भेंट की यही इतिहास हमको पता है।लेकिन उसके पांच साल पहले बड़ोदा के राजा सयाजीराव गायकवाड ने हिटलर के साथ एक करार किया था यह बात शायद ही आपको पता होगी। 1936 में बर्लिन में हो रही ऑलिम्पिक प्रतियोगिता का यजमान स्थान जर्मनी को दिया गया था।उस समय जर्मनी का राष्ट्रपति (Chancellor) हिटलर था।हिटलर को खेल पसंद नहीं थे।जर्मनी का पैसा खर्च हो जाए ऐसे ऑलिम्पिक खेल उसे अपने देश में आयोजित कराने की इच्छा नहीं थी।परन्तु उसके सलाहकार जोसोफ गोबेल्स ने हिटलर को समझाया "इन प्रतियोगिताओं का उपयोग हमारी नाजी विचारधारा को दुनिया भर में फैलाने का और अंतरराष्ट्रिय संबंध बनाने में होगा"। हिटलर भी उसकी बात मान गया।यह वार्ता सयाजीराव तक पहुंची। उससे पहले 1902 के अहमदाबाद कांग्रेस अधिवेशन में लोकमान्य तिलक और सयाजीराव गायकवाड की प्रत्यक्ष भेंट हुई थी उस दीर्घ चर्चा में तिलक ने उन्हें सलाह दी थी " आप राजा हैं राजा होने से मिली स्वतंत्रता का फायदा उठा कर विदेश जाकर अंग्रेजों के शत्रुओं से संबंध स्थापित कर भारत के स्वतंत्रता के लिए उनकी मदद लें, याद रखे शत्रु का शत्रु मित्र होता है। सयाजीराव के निजी सहायक विष्णुपंत नेने जर्मनी पहुँच गए।वहाँ उनको पहचानने वाला कोई नहीं था और हिटलर तक तो पहुंचना और भी कठिन था।उस ज़माने में संस्कृत बोलना अभिरुचि और विद्वत्ता का प्रतीक माना जाता था।उन्होंने संस्कृत बोलना शुरू कर दिया।जल्दी ही उनकी भेंट संस्कृत भाषा के विशेषज्ञो से करायी गयी और वही से उन्होंने जर्मन सरकार के उच्च लोगों से संपर्क किया । जल्द ही विष्णुपंत ने कुछ दस्तावेज तैयार किये। इधर सयाजीराव ने बर्लिन ओलिम्पिक के लिए जर्मनी में जाने की विनती भारत के वाइसरॉय से की।अमरावती के " हनुमान व्यायाम प्रसारक मंडल." को सयाजीराव ने ओलिम्पिक में जाने के लिए भरपूर आर्थिक मदद की अमरावती की " हनुमान व्यायाम प्रसारक मंडल." यह संस्था ओलिम्पिक में बड़ोदा रियासत की ओर से मैदान में उतरी. सयाजीराव बर्लिन पहुँच गए। 1 ऑगस्ट 1936 को उदघाटन कार्यक्रम शुरू हुआ।हिटलर उस कार्यक्रम का मुख्य अतिथि बनकर जहाँ बैठा था उसी बालकनी के नीचे सयाजीराव को बैठने का स्थान दिया गया।संचालन शुरू हुआ।हर कोई खिलाडी उनके देश का ध्वज लेकर आयोजकों को मानवंदना दे रहा था।भारतीय खिलाडी यूनियन जैक लेकर आये।जल्द ही भारतीय लोगों का दूसरा संघ हाथ में "भगवा ध्वज" लेकर मानवंदना देने लगा वह बडोदा रियासत का संघ था और वह बडोदा का राष्ट्रीय ध्वज था(चौकोनी पर भगवा). सयाजीराव पर नज़र रखे हुए ब्रिटिश जासूस अचंभित हो गए।यह खबर फौरन इंग्लैंड में पहुंचाई गयी। उससे भी आश्चर्यजनक घटना रात में घटी ! हिटलर ने सयाजीराव और उनके साथ आये खिलाडियों को शाही भोजन दिया।उसी समय हिटलर और सयाजीराव के बीच ऐतिहासिक करार हुआ "बर्लिन-बडोदा करार"! क्या था वह करार?? राजा सयाजीराव पहले से ही जान चुके थे कि दूसरा महायुद्ध होने वाला है। भारतीय राजओंको संगठित करने की उनकी योजना थी।उन्ही का उपयोग उन्हें भारत के स्वतंत्रता संग्राम में करना था।उस करार के अनुसार- 'दूसरे महायुद्ध में सभी हिंदू राजा हिटलर को मदद करेंगे ऐसा वचन उन्होंने हिटलर को दिया।इसके बदले हिटलर की सेना भारत को आजादी दिलाने में भारतीयों की मदद करेंगी यह वचन हिटलर ने दिया। पर दुर्भाग्य से कुछ साल बाद 7 फरवरी 1939 को दूसरा महायुद्ध शुरू होनेसे पहले ही सयाजीराव का निधन हो गया इसी वजह से यह करार अधूरा ही रह गया.उनके निधन की वार्ता हिटलर को मिलते ही उसने बडोदा रियासत को एक तार भेजा उसने लिखा था -
उसमे उसने शोक व्यक्त किया था । यह करार अगर अस्तित्व में आता तो भारतीय जनता 'गाँधी-नेहरु' छोड़ कर उन्ही के मार्ग पर चलती.
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